पाठ - प्रवेश। … अपनी क्षमताओं को पहचानने और समझदारी
से जीवन सुखमय हो जाता है ।
रसोईघर से बहुत अच्छी महक आ रही थी । सुहानी
सँभलकर चलती हुई माँ के पास पहुँच गई । माँ से पूछा - माँ ,
क्या आप केक बना रही हैं ?
माँ ने प्यार से कहा - हाँ बिटिया , आज तुम्हारा जन्मदिन
जो है । तुम्हें चॉकलेट केक बहुत पसंद हैं ना !
सुहानी बोली - हाँ माँ , मेरे मित्रों को भी आपके हाथ का
बना केक बहुत पसंद है । वे अब आने वाले ही होंगे ।
माँ बोलीं - हाँ सुहानी , अब तुम तैयार हो जाओ ।
माँ ने पहले ही रंग - बिरंगे गुब्बारों से कमरा सजा दिया
था । गुब्बारे फुलाने में सुहानी ने माँ की मदद की थी ।
पाँच बजते ही सुहानी के मित्र आने शुरू हो गए । मीतू
बहुत सुन्दर फूलों का गुलदस्ता लेकर आई । सुहानी ने गुलदस्ता
हाथ में लिया । फूल सूँघकर बहुत खुश होते हुए बोली - मुझे
गुलाब और रजनीगंधा के फूल बहुत अच्छे लगते है ।
धन्यवाद मीतू ।
एक - एक करके अन्य मित्र भी आ गए । माँ ने केक और
सब खाने की चीज़े मेज पर लगा दीं । सुहानी ने माँ की मदद
से केक काटा । सब बच्चो ने जन्मदिन की बधाई का गीत गाया
और उपहार दिए । सबने स्वादिष्ट चीजें खाई ।
दावत के बाद बच्चे बाहर बगीचे में खेलने गए । ध्रुव एक
रंग - बिरंगी गेंद लाया था । सब एक दूसरे की ओर गेंद फेंक -
फेंककर खेलने लगे ।
सुहानी देख नहीं सकती थी इसलिए गेंद पकड़ नहीं पा रही
थी । वह चुपचाप एक तरफ खड़ी हो गई । उसकी मित्र रोली ने
उसे देख लिया ।
रोली उपहार के रूप में घुंघुरुवाली रिंग लाई थी । वह
दौड़कर रिंग उठा लाई । उसने सब साथियों को एक बड़े - से
घेरे में खड़ा किया और बोली - आओ , पर पट्टी बाँध लो ।
हम यह रिंग एक दूसरे की ओर उछालेंगे । केवल आवाज
सुनकर रिंग पकड़नी है ।
सबको यह सुझाव बहुत अच्छा लगा ।
सबने आँखों पर पट्टी बांध ली । बच्चे बारी - बारी रिंग
उछालने लगे । आवाज सुनकर रिंग पकड़ना मुश्किल हो रहा था।
एक बार रिंग उस तरफ गई जिस तरफ सुहानी खड़ी थी । सुहानी
ने आवाज सुनते ही लपककर रिंग पकड़ ली । वह ख़ुशी से
चिल्लाई - हाँ , हाँ , यह रिंग मैं पकड़ सकती हूँ !
छन - छन करती रिंग जब भी सुहानी की ओर आती ,वह
आवाज की दिशा में दौड़कर रिंग पकड़ लेती । उसने एक बार
भी रिंग गिरने नहीं दी । खेल समाप्त होने पर सबने सुहानी के
लिए तालियाँ बजाई ।
अगले दिन से सुहानी शाम होते ही मित्रों के साथ
घुंघुरुवाली रिंग से खेलने लगी । घोंघुरुवाली रिंग उसका 'प्रिय
खिलौना ' बन गई ।
हमने सीखा - * संवेदनशीलता * खेल का आनंद लेना * मित्रत्रा
* खेल - भावना * शुभकामनाये * मदद
अभ्यास
1. सुहानी को कौन - कौन से फूल पसंद थे ?
2. सुहानी चुपचाप एक तरफ क्यों खड़ी हो गई ?
3. सुहानी को घुंघुरुवाली रिंग क्यों अच्छी लगी ?
से जीवन सुखमय हो जाता है ।
रसोईघर से बहुत अच्छी महक आ रही थी । सुहानी
सँभलकर चलती हुई माँ के पास पहुँच गई । माँ से पूछा - माँ ,
क्या आप केक बना रही हैं ?
माँ ने प्यार से कहा - हाँ बिटिया , आज तुम्हारा जन्मदिन
जो है । तुम्हें चॉकलेट केक बहुत पसंद हैं ना !
सुहानी बोली - हाँ माँ , मेरे मित्रों को भी आपके हाथ का
बना केक बहुत पसंद है । वे अब आने वाले ही होंगे ।
माँ बोलीं - हाँ सुहानी , अब तुम तैयार हो जाओ ।
माँ ने पहले ही रंग - बिरंगे गुब्बारों से कमरा सजा दिया
था । गुब्बारे फुलाने में सुहानी ने माँ की मदद की थी ।
पाँच बजते ही सुहानी के मित्र आने शुरू हो गए । मीतू
बहुत सुन्दर फूलों का गुलदस्ता लेकर आई । सुहानी ने गुलदस्ता
हाथ में लिया । फूल सूँघकर बहुत खुश होते हुए बोली - मुझे
गुलाब और रजनीगंधा के फूल बहुत अच्छे लगते है ।
धन्यवाद मीतू ।
एक - एक करके अन्य मित्र भी आ गए । माँ ने केक और
सब खाने की चीज़े मेज पर लगा दीं । सुहानी ने माँ की मदद
से केक काटा । सब बच्चो ने जन्मदिन की बधाई का गीत गाया
और उपहार दिए । सबने स्वादिष्ट चीजें खाई ।
दावत के बाद बच्चे बाहर बगीचे में खेलने गए । ध्रुव एक
रंग - बिरंगी गेंद लाया था । सब एक दूसरे की ओर गेंद फेंक -
फेंककर खेलने लगे ।
सुहानी देख नहीं सकती थी इसलिए गेंद पकड़ नहीं पा रही
थी । वह चुपचाप एक तरफ खड़ी हो गई । उसकी मित्र रोली ने
उसे देख लिया ।
रोली उपहार के रूप में घुंघुरुवाली रिंग लाई थी । वह
दौड़कर रिंग उठा लाई । उसने सब साथियों को एक बड़े - से
घेरे में खड़ा किया और बोली - आओ , पर पट्टी बाँध लो ।
हम यह रिंग एक दूसरे की ओर उछालेंगे । केवल आवाज
सुनकर रिंग पकड़नी है ।
सबको यह सुझाव बहुत अच्छा लगा ।
सबने आँखों पर पट्टी बांध ली । बच्चे बारी - बारी रिंग
उछालने लगे । आवाज सुनकर रिंग पकड़ना मुश्किल हो रहा था।
एक बार रिंग उस तरफ गई जिस तरफ सुहानी खड़ी थी । सुहानी
ने आवाज सुनते ही लपककर रिंग पकड़ ली । वह ख़ुशी से
चिल्लाई - हाँ , हाँ , यह रिंग मैं पकड़ सकती हूँ !
छन - छन करती रिंग जब भी सुहानी की ओर आती ,वह
आवाज की दिशा में दौड़कर रिंग पकड़ लेती । उसने एक बार
भी रिंग गिरने नहीं दी । खेल समाप्त होने पर सबने सुहानी के
लिए तालियाँ बजाई ।
अगले दिन से सुहानी शाम होते ही मित्रों के साथ
घुंघुरुवाली रिंग से खेलने लगी । घोंघुरुवाली रिंग उसका 'प्रिय
खिलौना ' बन गई ।
हमने सीखा - * संवेदनशीलता * खेल का आनंद लेना * मित्रत्रा
* खेल - भावना * शुभकामनाये * मदद
अभ्यास
1. सुहानी को कौन - कौन से फूल पसंद थे ?
2. सुहानी चुपचाप एक तरफ क्यों खड़ी हो गई ?
3. सुहानी को घुंघुरुवाली रिंग क्यों अच्छी लगी ?
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